सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

आम चुनाव से पहले जहां भाजपा का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन हो गया। जिसमें करीब 11 हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

यही अंतर...
आम चुनाव से पहले जहां भाजपा का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन हो गया। जिसमें करीब 11 हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। भाजपा नेतृत्व ने पार्टी की रीढ़ इन ग्रास रूट वर्कर्स में जोश भरते हुए भाजपा 370 और एनडीए 400 पार का टारगेट भी थमा दिया गया। दूसरी ओर, कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा हो रही। जिसकी टाइमिंग को लेकर लगातार सवाल उठ रहे। जब आम चुनाव सामने। तो यह स्वाभाविक कि टिकट के दावेदार दिल्ली के चक्कर काटेंगे। लेकिन यहां उनका नेतृत्व से संपर्क साधना मुश्किल हो रहा। क्योंकि सभी बड़े नेता यात्रा के साथ। ऐसे में टिकटार्थियों की बात सुने कौन? फिर मल्लिकार्जन खड़गे, राहुल गांधी एवं केसी वेणुगोपाल की ऐसी तिकड़ी। इनमें से किससे मिला जाए और किसे छोड़ा जाए। यह भी पहेली। लेकिन फैसलाकुन जवाब किसी के पास नहीं। मतलब, पक्ष एवं विपक्ष की कार्यप्रणाली में यही अंतर...

आंदोलन या राजनीति?
आम चुनाव की घोषणा में अब कुछ ही दिन बाकी। इसी बीच, एमएसपी की मांग को लेकर खासतौर से पंजाब से किसान आंदोलन। देश के बाकी राज्यों में इसकी ज्यादा हलचल नहीं। केन्द्र के साथ किसान नेताओं की कई दौर की बातचीत हो चुकी। सरकार ने अपनी सीमा एवं कठिनाई भी बताई। लेकिन आंदोलनकारी अपनी मांगों से आगे पीछे कुछ सोच नहीं रहे। लगभग अड़ियल रवैया। ऐसे में अब आंदोलन की आड़ में राजनीति होने की चर्चा। हां, राजधानी दिल्ली की परेशानी बढ़ रही। खाद्य वस्तुओं की किल्लत से लेकर यातायात प्रभावित होने की आशंका। फिर यह समय बच्चों की परीक्षाओं का भी। ऐसे में, आंदोलन को हर हाल में जारी रखने की जिद किस ओर संकेत? क्योंकि इनमें से कुछ किसान नेता पंजाब विधानसभा चुनाव- 2022 के दौरान राजनीति में हाथ आजमा चुके। परिणाम सबके सामने। फिर आंदोलन में राजनीतिक भाषा के पीछे कौन?

नया अध्याय
सोनिया गांधी का राजस्थान से राज्यसभा में आना। मानो प्रदेश की राजनीति में नए अध्याय की शुरूआत। गांधी परिवार के लिए भी और राजस्थान कांग्रेस के लिए भी। फिर सोनिया गांधी के लंबे राजनीतिक अनुभव का लाभ प्रदेश के पार्टी संगठन को मिलना भी तय सा। साथ ही पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश एवं उत्साह का संचार का होना भी उनकी मौजूदगी कारण बनेगा। सबसे बड़ी बात तो यह कि तमाम राजनीतिक उतार चढ़ाव के बावजूद सोनिया गांधी ने उच्च सदन में जाने के लिए राजस्थान को ही चुना। बात भरोसे और विश्वास की। सो, यह तो कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व के लिए खुश होने का समय। क्योंकि किसी भी प्रदेश के लिए यह फ और गौरव करने की बात। फिर कांग्रेस में राजस्थान का अपना इतिहास। और इसके स्वर्णिम पन्ने भी। जिसमें यह एक और महत्वपूर्ण पड़ाव जुड़ गया। जिसके परिणाम का इंतजार।  

अंकगणित
राज्यसभा का अंकगणित बदलने जा रहा। साथ ही उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक में खेल होने की संभावना बलवती हो रही। भाजपा इन राज्यों में विपक्ष को असहज करने का मौका नहीं छोड़ना चाहती। असल में, राज्यसभा का यह द्विवार्षिक चुनाव। जिसमें 56 सीटें और 15 राज्य शामिल। लेकिन साथ में आम चुनाव भी करीब। पीएम मोदी कह चुके। उनके तीसरे कार्यकाल में सरकार बड़े निर्णय करेगी। अब जानकार इसका अनुमान लगा रहे। सो, इन फैसलों में राज्यसभा की भी भूमिका होना स्वाभाविक। क्योंकि मोदी सरकार अभी भी उच्च सदन में विधेयक पारित कराने के लिए क्षत्रपों पर निर्भर। ऐसे में, मोदी सरकार का एक-एक सीट पर फोकस। लोकसभा में वह अपने आंकड़ों पर मुतमईन। लेकिन दस साल बाद भी भाजपा राज्यसभा में सहज नहीं। अभी भी वह सौ का आंकड़ा पार नहीं कर पाई। जबकि करीब तीन दशक बाद उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार।

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बदलाव की आहट!
पीडीपी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग जम्मू में आयोजित पीएम मोदी की रैली में शामिल होने पहुंच गए। साल- 2019 के बाद से प्रदेश का प्रशासन केन्द्र के अधीन। इस दौरान सरकार ने कई दूरगामी एवं परिणामकारी बदलाव कर डाले। नगर एवं पंचायतों समेत विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण के प्रावधान लागू करने का निर्णय। कश्मीरी अवाम को पहली बार समझ आ रहा कि उनके हक कितने और क्या? अब इससे अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार की पोल पट्टी भी खुल रही। आज तक जिसका डर और खौफ  राज्य की अवाम को दिखाया गया। वैसा तो कुछ हुआ नहीं। बल्कि अवाम और आजाद महसूस कर रही। साथ में विकास की कई परियोजनाओं पर काम भी हो रहा। वह भी समय सीमा में। इधर, पीडीपी में बिखराव और फारूख अब्दुल्ला की भाषा बहुत कुछ बयां कर रही। मतलब बदलाव की आहट साफतौर पर सुनाई दे रही।

लाज बच गई!
मानो गठबंधन के मामले में कांग्रेस की लाज बच गई। उत्तर प्रदेश में आखरी में सपा से गठबंधन हो गया। आप के साथ भी कांग्रेस की पंजाब को छोड़कर दिल्ली, गुजरात हरियाणा एवं गोवा में बात बन गई। यह नेतृत्व के लिए सुकून भरा। वरना जैसे-जैसे भारत जोड़ो न्याय यात्रा आगे बढ़ रही। दांव उल्टा ही पड़ रहा। बिहार में महागठबंधन की सरकार जाती रही। तो झारखंड में सीएम सोरेन को पद छोड़ना पड़ा। ममता बनर्जी ने अकेले ही निर्णय ले लिया। अब यात्रा राजस्थान में प्रवेश करते हुए एमपी में चलने वाली। लेकिन कमलनाथ एवं नुकुलनाथ को लेकर इतना असमंज हो गया कि पार्टी को जवाब देना भारी पड़ गया। जैसे तैसे कमलनाथ को रोक तो लिया गया। लेकिन भविष्य में वह क्या कदम उठाएंगे। इसकी क्या गारंटी? और नेतृत्व को असहज नहीं होना पड़े। फिर यात्रा में गुजरात एवं महाराष्टÑ का मार्ग बाकी।

-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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