चुनावी कोष प्रबंध पर व्यापक विचार-विमर्श जरूरी

चुनावी कोष प्रबंध पर व्यापक विचार-विमर्श जरूरी

भारत विश्व का सबसे बड़ा परिपक्व प्रजातांत्रिक देश माना जाता है, जहां पर लगभग 100 करोड़ जनसंख्या मतदान का अधिकार रखती है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा परिपक्व प्रजातांत्रिक देश माना जाता है, जहां पर लगभग 100 करोड़ जनसंख्या मतदान का अधिकार रखती है। देश में बहु राजनीतिक दल की व्यवस्था है जिसमें दलीय आधार पर विभिन्न राजनीतिक दलों एवं निर्दलीय प्रत्याशियों द्वारा चुनाव लड़ा जाता है, लेकिन आज चुनाव अत्यधिक महंगे होते जा रहे हैं तथा देश में राजकोष से चुनाव लड़े जाने की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में चुनाव लड़ने के लिए पैसा एक में अहम प्रश्न रखता है, वह कहां से आए। राजनीतिक दल समूचे देश में चुनाव लड़ने के लिए पैसे की व्यवस्था कैसे करें। इस दृष्टि से चुनावी पैसे का प्रबंध या तो स्वयं प्रत्याशी द्वारा या राजनीतिक पार्टी की कोष से किया जाता है। चुनावी कोष प्रबन्ध में सुधार की दृष्टि से लगभग 5 वर्ष पूर्व चुनावी बॉन्ड योजना लाई गई थी।

इससे पूर्व राजनीतिक दल चंदा तो लेते थे लेकिन उसका कोई लेखा-जोखा नहीं था। अधिकांशत काले धन का नगद रूप में ही हस्तांतरण किया जाता था जिससे भ्रष्टाचार को भी अधिक बढ़ावा मिलता था। बड़े-बड़े औद्योगिक घराने, उद्योगपति, व्यापारिकगण राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों को चोरी छुपे पैसा मुहैया करवाते थे। चुनाव लड़ने के लिए जो चंदा दिया जाता था उसमें न तो पारदर्शिता थी ना कोई हिसाब-किताब बल्कि प्रत्येक चुनाव महंगाई को बढ़ाने वाला ही साबित होता था। 5 वर्ष पूर्व जो चुनावी वित्तीय प्रबंधन एवं काले धन की उपयोग पर रोक लगाने की दृष्टि से चुनावी बॉन्ड योजना लाई गई थी जिसके अंतर्गत कोई भी भारतीय व्यक्ति, कंपनी, निगम भारतीय स्टेट बैंक के द्वारा जारी चुनावी बॉन्ड को असीमित मात्रा में खरीद सकता है, भारतीय स्टेट बैंक द्वारा 1000 से लेकर 1 करोड़ रुपए मूल्य के बॉन्ड जारी किए गए, इसके अंतर्गत गोपनीयता को अत्यधिक महत्व दिया गया। नाम एवं स्रोत को गोपनीय रखा गया है तथा उसका कोई हिसाब-किताब नहीं देखा जाएगा। बॉन्ड जारी होने पर कोडिंग व्यवस्था को लागू किया गया। 

यहां पर भी गोपनीयता के नाम पर पारदर्शिता को नजर अंदाज किया गया था। देश में आगामी लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं, लेकिन संपूर्ण चुनावी बॉन्ड योजना ही सवालों के घेरे में आ गई है इस पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने रोक लगा दी है तथा अग्रणी बैंक स्टेट बैंक आफ  इंडिया से हिसाब किताब मांगा है। माननीय उच्चतम न्यायालय का मत है कि देश के मतदाता को हक है कि वह जाने की किन-किन व्यक्तियों, कंपनियां, निगम ने किन-किन राजनीतिक दलों के लिए चुनावी बॉन्ड कितने व कितने मूल्य के क्रय किए गए है। इसका पूर्ण विवरण चुनाव आयोग के माध्यम से उपलब्ध करवाया जाए।भारतीय स्टेट बैंक द्वारा जारी चुनावी बॉन्ड के संबंध में जो सार्वजनिक सूचना प्रदान करवाई गई है उसके अनुसार गत पांच वर्षों में 12769 करोड़ रुपए मूल्य के चुनावी बॉन्ड जारी किए गए हैं, जो कि चंदे के रूप में लगभग 28 राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त किए गए हैं। इन राजनीतिक दलों द्वारा गत पांच वर्षों में समय-समय पर चुनाव लड़ने के लिए चुनावी चंदे का उपयोग किया गया, लेकिन चुनावी कोष की जानकारी का विश्लेषण करने पर कई तथ्य उजागर होते हैं, जो दर्शाते हैं कि जिन कंपनियों ने सबसे ज्यादा चुनावी बॉन्ड खरीदे उसमें नामी औद्योगिक घरानों का कहीं नाम नहीं है जिन कंपनियों ने चुनावी बॉन्ड खरीदे उन्होंने कमाए गए लाभ से अधिक मूल्य के चुनावी बॉन्ड खरीद कर खर्च दिखाकर कर राहत प्राप्त कर ली। सबसे ज्यादा मूल्य के बॉन्ड फ्यूचर गेमिंग व होटल सर्विस प्राइवेट लिमिटेड ने वर्ष 2019-23 तक 215 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया, लेकिन 1368 करोड़ के चुनावी बॉन्ड कहां से खरीद लिए। यह पैसा कहां से आया, चुनावी बॉन्ड खरीदने के पीछे क्या मंशा रही। बॉन्ड में पैसा डालकर सत्ता रूढ़ सरकारों एवं राजनीतिक दलों, लोकसभा, विधानसभा सदस्यों से क्या लाभ उठाना चाहते थे और उन्होंने उठाया।

ऐसे में चुनावी कोष प्रबन्ध पर संपूर्ण देश में व्यापक व विचार-विमर्श की आवश्यकता है। कोई नीतिगत निर्णय लिया जाना चाहिए, जिसमें भारतीय चुनाव आयोग, सरकार, न्यायालय, सिविल सोसाइटी, राजनीतिक दल, मतदाता आदि अपने अमूल्य सुझावों से चुनावी सुधारों को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं। चुनावी बॉन्ड योजना की कमियों का विश्लेषण किया जाना चाहिए तथा यह योजना अपूर्ण है तो इसे अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाया जाए ताकि पूर्ण पारदर्शिता प्रदर्शित हो तथा अवैध धन पर रोक लगे। 

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पिछले दरवाजे से अवैध धन को वैध बनाने की नीति भारत के लोकतंत्र के भविष्य व गुड गवर्नेंस के लिए घातक हैं। आज भारत की गणना सबसे भ्रष्टतम देश में आती है, चाहे विकास के कितने ही दावे किए जाते हैं। जिससे कोई भी क्षेत्र सरकारी एवं गैर सरकारी मुक्त नहीं हो पाया है, भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस के नीति को सख्ती से लागू किया जाए ताकि भ्रष्टाचार हतोत्साहित हो। ईमानदारी को उचित स्थान सम्मान व प्रतिष्ठा प्रदान की जानी चाहिए। विचारणीय है कि क्या चुनाव लड़ने के लिए राजकोष उपलब्ध करवाया जा सकता है जैसा की दुनिया के अन्य देशों में करवाया जाता है, लेकिन समस्या यह है कि भारत में सर्वाधिक मतदाता है और सरकार के तीन स्तरों पर नियत समय पर चुनाव करवाए जाने जरूरी होते है।
-डॉ. सुभाष गंगवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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