विस्तार बिना अधूरा है सुरक्षा परिषद : कांबोज 

विस्तार की मांग हम करते हैं

विस्तार बिना अधूरा है सुरक्षा परिषद : कांबोज 

भारत को एक ऐसी परिषद की जरूरत है जो संयुक्त राष्ट्र की भौगोलिक और विकासात्मक विविधता को पूरा करे। इसके लिए इसके विस्तार की मांग हम करते हैं।

न्यूयॉर्क। भारत ने सुरक्षा परिषद में विस्तार की मांग को एक बार फिर जोरदार तरीके से उठाया है। भारत ने सुरक्षा परिषद में विस्तार पर निर्णायक कार्रवाई का आह्वान करते हुए एक समावेशी ढांचे का समर्थन किया जो वास्तव में गतिशील वैश्विक परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करे। न्यूयॉर्क में सुरक्षा परिषद को सही करने पर अंतर-सरकारी वार्ता के छठे दौर के दौरान संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कांबोज ने ये मांग उठाई। कांबोज ने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता के विस्तार के पक्ष में है। स्थायी और गैर-स्थायी, दोनों श्रेणियों के विस्तार की जरूरत है। कांबोज ने कहा कि हमारा मानना है कि सुरक्षा परिषद में वास्तविक बदलाव लाने के लिए इसका विस्तार जरूरी है। यही सभी को प्रतिनिधित्व देने, ज्यादा उत्तरदायी और प्रभावी बनाने का एकमात्र तरीका है। कांबोज ने जोर देकर कहा कि भारत को एक ऐसी परिषद की जरूरत है, जो संयुक्त राष्ट्र की भौगोलिक और विकासात्मक विविधता को पूरा करे। इसके लिए इसके विस्तार की मांग हम करते हैं।

दोनों श्रेणियों में परिषद का विस्तार जरूरी
रुचिरा कांबोज ने कहा कि हमें एक संशोधित सुरक्षा परिषद की आवश्यकता है जो संयुक्त राष्ट्र की भौगोलिक और विकासात्मक विविधता को बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करे। एक सुरक्षा परिषद जहां अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया और प्रशांत के विशाल बहुमत सहित विकासशील देशों और गैर-प्रतिनिधित्व वाले क्षेत्रों की आवाजों को भी उचित स्थान मिलता है। इसके लिए सदस्यता की दोनों श्रेणियों में परिषद का विस्तार नितांत आवश्यक है। कांबोज ने कहा कि भारत की स्थिति को अधिकांश सदस्य देशों द्वारा व्यापक रूप से समर्थन दिया गया है और यह तथ्य सदस्यता की श्रेणियों के मुद्दे पर 2015 के फ्रेमवर्क दस्तावेज में रेकॉर्ड पर है। कांबोज ने कहा कि 122 में से कुल 113 सदस्य देशों ने चार्टर में निर्दिष्ट दोनों मौजूदा श्रेणियों में विस्तार का समर्थन किया। इसका मतलब है कि दस्तावेज में 90 प्रतिशत से अधिक लिखित प्रस्तुतियां इसके पक्ष में थीं। केवल कुछ मुट्ठी भर सदस्य देश ही इसका विस्तार नहीं चाहते हैं। परिषद में यह एक आम धारणा बन गई है कि स्थायी श्रेणी में विस्तार अलोकतांत्रिक होगा। 

 

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